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रिश्तों की कश्मकश

इस फ़िल्म की कहानी के सभी पात्र व घटनाएं काल्पनिक हैं, इनका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई सम्बन्ध नहीं, यदि किसी व्यक्ति या घटना से कोई सम्बंध प्रतीत होता है तो वह केवल संयोग मात्र ही माना जायेगा।
हर इंसान अपने पूर्व जन्म के बचे हुए कर्मों को पूरा करने के लिए जन्म लेता है। इसके साथ ही फिर वो पूर्व जन्मों के रिश्तों को भी निभाने आता है। ये बात और है कि कभी कभी समाज के लोग उसके पूर्व जन्म के रिश्ते को निभाने नहीं देते और इन्ही सब बातों की वजह से उसकी ज़िन्दगी उलझनों से भर जाती है और वो चैन और सुकून से जी नहीं पाता।
यही वजह है कि अक्सर घरों में देखा जाता है, जो माँ बाप संघर्ष करके अपने बच्चों को फूलों की तरह पालते हैं , वही उन बच्चों की खुशियां का गला घोंटकर जीते जी अपने ही बच्चों को मरने के लिए छोड़ देते हैं, भले ही ऐसे माता पिता अनजाने में ही ऐसा कर्म कर बैठतें हों, लेकिन इसकी सजा तो उन्हें भगवान जानकर देंगे।
इस कहानी का उद्देश्य समाज में दिनों दिन सच्चे रिश्तों में जहर घोलने वाली ज़िद, अविश्वास, गलत धारणा जैसी बातों को खत्म करना है, जिससे समाज में पारिवारिक प्रेम सौहार्दपूर्ण वातावरण बन सके और इसके साथ ही इंसान को अपने कर्मों को पूरा करने के लिए पुनर्जन्म ना लेना पड़े।
आगे देखते हैं ये कहानी क्या कहती है?

एक लड़की थी, जिसका नाम पूजा था, जो सिर्फ अपनी पढ़ाई पूरी करके घर में अपनी माँ का हांथ बटाया करती थी। उसके घरवाले किसी रिश्तेदार परिवार में पूजा को नहीं भेजते थे। जैसा हर लड़की का पिता चाहता है कि समय पर ही उसकी लड़की की शादी हो जाये, इसी तरह उसके पापा को भी लगा कि अब उसे अपनी लड़की की शादी कर देनी चाहिये। उन्होंने अपने मिलने वालों को एक अच्छा लड़का बताने को कहा। इस पर जिसे योग्य लड़का मिलता वो उससे कहता। ऐसे ही उन्होंने एक लड़के से जब अपनी लड़की के लिए रिश्ता बताने की बात की तो उसने अपने दोस्त अनुज के बारे में बताया और साथ ही यह भी कहा कि अगर पूजा की शादी अनुज के साथ हो जाये तो दोनों लोग बहुत खुश रहेंगे, फिर एक दिन उसने अपने दोस्त अनुज से पूजा और उसके पापा को मिलाया। पूजा और उस के पापा को लड़का पसन्द आ गया। फिर पूजा के पापा ने अनुज के यहां जाकर रिश्ते की बात करने के लिए पूजा की मम्मी से कहा। इस पर पूजा की मम्मी ने कहा जितनी जल्दी शादी की बात पक्की हो जाये, उतना ही अच्छा है, वैसे भी हमें पूजा की शादी जल्दी ही तो करनी है। किसी दिन चले जाओ पूजा के भाई के साथ और रिश्ते की बात फाइनल कर आओ। तभी एक दिन पूजा के पापा इस उम्मीद से कि बड़ा घर है, रुतबा है सबका, यहां मेरी लड़की बहुत सुखी रहेगी। अनुज के पापा के पास आये अपना परिचय दिया, अपने आसपास के रिश्तेदारों के बारे में भी बताया और फिर अपनी लड़की पूजा की फोटो दिखाई। लड़की देखने मे अच्छी थी और भारतीय संस्कृति की पक्षधर थी। अनुज की मम्मी को तो पूजा ठीक लगी लेकिन अनुज के पापा को इस रिश्ते में कोई दिलचस्पी नहीं थी। चाय नास्ते के बाद पूजा के पापा सबसे मिल कर चले गए।
फिर एक दिन अनुज की मम्मी और दीदी अनुज के साथ लड़की देखने चले गए। वहां अनुज की मम्मी ने पूजा को देखने के बाद मिठाई का डिब्बा और 1100 रूपये देकर कहा कि हमें पूजा पसन्द है, फिर पूजा के मम्मी पापा ने दहेज की बात की तो उन्होंने कहा हमारे लिए दुल्हन ही दहेज है, अच्छी बहू मिल जाये उसी से घर खुशियों से भर जाता है, दान दहेज तो कहने की बातें हैं। सारी बातें हो गयी तो सब एक दूसरे से मिल कर विदा होने लगे। तभी अचानक अनुज की मम्मी के पैर जीने पर चढ़ते समय फिसल गए, पूजा ने मम्मी का हाँथ तुरंत पकड़ लिया और अनुज की मम्मी गिरने से बच गयीं। घर आकर अनुज की दीदी मम्मी से कहने लगी कि आखिर पूजा में क्या खास बात देखी जो तुरन्त बहू मान लिया, इस पर मम्मी ने कहा कि जो देखना था वो देख लिया। कितना ख्याल रखती है। उसी दिन से पूजा नेअनुज और उसके घर वालो को अपना मान लिया और अनुज ने पूजा और उसके परिवार वालों को। पूजा और अनुज एक दूसरे को इतने कम समय में इतनी अच्छी तरह समझने लगे थे कि ऐसा लगता था कि ये रिश्ता सिर्फ इस जनम का ही नहीं है बल्कि कई जनमों से दोनों साथ हैं।
जैसे उनकी ज़िन्दगी की प्रेम कहानी का पुनर्जन्म हुआ हो।
दिन बीतते गए अनुज और पूजा के घर वालों से जो भी शादी के रिश्ते की बात करता तो वो यही जवाब देते की उनकी शादी तय हो चुकी है। इतने प्यार और अपनेपन से दोनों परिवार के लोग अपना रिश्ता बड़ी शिद्द्त के साथ निभा रहे थे, सब कुछ बड़े अच्छे से चल रहा था, दोनों परिवार वाले खुश थे। दोनों के घर वाले अक्सर एक दूसरे से बातें करते रहते थे। एक दिन अचानक अनुज का एक्सीडेंट हो जाता है, खबर सुनते ही उस दिन पूजा और उसके घर वालों ने खाना नहीं खाया। बस भगवान से जल्दी ठीक होने की प्रार्थना करते रहे। पूजा के पापा ने अनुज को हॉस्पिटल में भर्ती कराया जहाँ देर रात हालत और खराब होने लगी और अनुज को हैलट रेफर कर दिया गया जहां अब अनुज की दीदी और पूजा के मम्मी पापा थे। हालत में सुधार होने से अनुज को घर भेज दिया गया और फिर 3 महीने बाद अनुज ठीक हो गया। चूंकि पूजा के पापा ने भी देखभाल की थी इसलिए अक्सर ऐसी बात कर दिया करते कि बिना रुपये खर्च किये कहीं कुछ काम नहीं होता। हमने इतना कुछ किया। ऐसी बातें फिर अनुज के घरवालों को बहुत बुरी लगने लगीं। ऐसा लगता कि लड़की वाले लड़के वालों पर एहसान कर रहे हैं। इन सब बातों को सुन सुनकर अनुज के घर वाले तंग आ चुके थे लेकिन पूजा और अनुज तो हर बात में राजी थे लेकिन फिर भी घर वालों की जिद के आगे दोनों हार गए। चूंकि अनुज खुद के पैरों पर खड़ा नहीं था इसलिए भी शायद ऐसे हालात बन रहे थे घर में। एक दिन पूजा ने अनुज से फोन पर कहा कि कभी ना कभी तो आपको अपने पैरों पर खड़ा होना ही पड़ेगा फिर चाहे अभी खड़े हो जाओ या फिर मुझे खोने के बाद। दोनों काफी देर रोते रहें।अनुज और पूजा ने फिर भी एक दूसरे परिवार के सदस्यों का सम्मान करना नहीं छोड़ा। इतना कुछ हो जाने के बाद एक दिन पूजा के पापा का फोन आया और अनुज से बोले कि बेटा अपने घरवालों की बात मान लो, वो जहां शादी करना चाहे कर लेना, क्योकि माँ बाप अपने बच्चों का कभी बुरा नहीं चाहेंगे। शायद क़िस्मत में यही तक साथ लिखा हो और अगर पूजा को तुम्हारे घर की बहू बनना लिखा है तो फिर कोई कितना भी कुछ कर ले, साथ नहीं छूट सकता।
एक दिन अनुज के पापा के पास उनके किसी दोस्त का फोन आ गया, उन्होने अपने लड़के की शादी के लिए आये रिश्ते की बात कहते हुए कहा कि लड़की वाले हमारी हैसियत के बराबर नहीं हैं, इसलिए इस रिश्ते से हम खुश नहीं हैं। इस पर उनके दोस्त ने कहा कि जिन बच्चों को फूलों की तरह पाल पोस कर इतना बड़ा किया, उन्ही बच्चों की खुशियां छीन कर जीते जी मार देना चाहते हो, इतना बड़ा पाप, अधर्म ना करो,और फिर क्या इसी दिन के लिए इतना संघर्ष करके अपने बच्चों की परवरिश की थी, वैसे भी इस बुढापे में लाठी तो संभलती नहीं, इतना बड़ा पाप का बोझ लाद कर कैसे जिंदगी का बचा हुआ ये सफर तय कर सकोगे।
इस पर अनुज के पापा ने कहा हम ऐसे घर में शादी कैसे कर सकते हैं जहाँ इतना फर्क हो, कहां हम लोग और कहां वो सब। हमने तो कह दिया कि हमें उस घर में रिश्ता करना ही नहीं, फिर घर में अनुज की दीदी चाय नास्ता लेकर आई और रख कर चली गईं। अनुज के पापा फिर अपने काम में व्यस्त हो गए।
धीरे धीरे कुछ दिन बाद घर में ऐसे ही किसी बात को लेकर बहस हो गयी, अनुज ने मम्मी से कहा कि क्या किसी ने किसी की क़िस्मत को देखा है, जब कोई नही जानता कि किसके साथ कब क्या होगा तो फालतू कीबातें सोचने से क्या मिल जाएगा। जब हर इंसान अपनी क़िस्मत लेकर आता है तो क्या लगता है कि आप लोग जैसा चाहोगे वैसा हो जाएगा। एक आप लोग ही हैं इस दुनिया में जो खुदतो क़िस्मत का लिखा करते रहे और अब अपने बच्चों की क़िस्मत खुद लिखने चले। वाह कमाल की बात है अगर ऐसे ही सब होने लगता तो हर बड़े घर के बच्चे आज चांद पर घर बनाकर रहने लगते। इस पर घर वाले नाराज होकर अनुज को ऐसे देखने लगे कि जैसे अनुज ने सबसे बड़ा गुनाह कर दिया। फिर पापा ने कहा बेटा जब एक कमरा अपनी मेहनत कमाई से बनाओगे तब समझ में आएगा कि जिंदगी जीना कितना आसान होता है। तुम्हारे पास सब कुछ है इसलिए तुम ऐसी बातें कर रहे हो, नही तो ऐसी बातें सपने में भी नहीं आती। इसपर अनुज ने कहा कि पापा जब कोई खुद की क़िस्मत के बारे में नही जानता तो फिर वह दूसरों की जिंदगी के बारे में कैसे कुछ कह सकता है। फिर अनुज के पापा ने कहा बेटा कुण्डली में जब तक सब कुछ ठीक से नहीं मिल जाता, तब तक कोई कैसे शादी कर सकता है। जिस तरह तुम्हारी जिन्दगी अमूल्य है, उसे भी अपनी ज़िंदगी अच्छे से जीने का हक है। अपनी खुशी के लिए किसी की जिन्दगी दॉव पर लगा देना, भगवान की नज़र में अच्छा नही होता इसलिए मेरी बात को समझो और अपनी और दूसरों की खुशी की वजह बनो।
भगवान और माँ बाप कभी अपने बच्चों का अहित नही चाहते। क्या पता उसे इतनी खुशी मिल जाये आने वाली जिंदगी में, जो हम नही दे पाते। इतना कुछ कह कर अनुज के पापा तो अपने काम से बाहर चले गए लेकिन अनुज की बैचैन नजरें दीवारों से अपने सवालों के जवाब मांग रही थी। घर में धीरे धीरे सब माहौल ठीक हो गया लेकिन कहते हैं ना ' राख में लिपटी हुई चिंगारी' पूरे घर को जलाने की ताकत रखती है। कुछ ऐसा ही हुआ अनुज की जिंदगी में भी। अनुज के पापा तो अपनी जिद छोड़ने से रहे, भले उनका घर बर्बाद ही क्यों ना हो जाये। पूरा घर उनकी जिद के आगे हार जाता था उनके खिलाफ किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि कोई उनसे किसी रिश्ते के लिए हां कहला ले। अनुज के पापा के साथ अनुज की मम्मी भी बड़ी जिद्दी थीं , फर्क सिर्फ इतना था कि वो अपने घर परिवार को बढ़ाने की हमेशा सोचती रहती थीं और अनुज के पापा को जब से मम्मी के गांव की रहने वाली एक औरत ने वशीकरण कर दिया, तब से अनुज के पापा अपने घर परिवार से ज्यादा उस औरत के घर परिवार का ख्याल रखते थे, उस औरत ने सिर्फ लाखों रुपयों की खातिर ही नहीं बल्कि अपनी लड़की की शादी अनुज से कराकर उनके पापा की सारी दौलत पर हक जमा सके, इसलिए उसने ऐसा काला जादू किया कि अनुज के पापा उसकी लड़की के सिवा किसी भी और लड़की को अपनी बहू बनाने के पक्ष में नहीं थे। इसी वजह अनुज के लिए पूजा की शादी के रिश्ते से पहले भी जो रिश्ते आये थे उन सबको अनुज के पापा ने मना कर दिया था। अनुज के पापा की इन्ही हरकतों की वजह से अनुज की मम्मी ने एक रिश्ता ख़ुद तय कर दिया था, जबकि पहले लड़की वालों ने 2 बार अनुज के पापा से ही अनुज की शादी का रिश्ता करने को कहा था लेकिन जब अनुज के पापा ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई तो अनुज की मम्मी को आगे आना ही पड़ा। अनुज की मम्मी ने जब लड़की की फोटो देखी तो उन्हें बहुत पसंद आई, लड़की वालों के बार बार कहने पर अनुज की मम्मी और उसकी बहन लड़की को देखने चले गए। वहां जाकर अनुज की मम्मी और बहन को लड़की और उनके घर वाले बहुत पसन्द आये। अनुज की मम्मी ने तुरन्त ही नेग देकर उसे अपनी बहू मान लिया। घर आकर अनुज की मम्मी और बहन बहुत खुश थी, वो जल्दी से जल्दी अपनी बहू को घर ले आना चाहती थीं इसीलिए अनुज की मम्मी ने अनुज को भी लड़की देखने के लिए भेज दिया था ये सोच कर कि अनुज को भी पसन्द आ जाये तो जल्दी शादी की तैयारियां शुरू की जा सकें।
जब अनुज ने दिशा को देखा तो समझ में आया कि बेशक दिशा बहुत अच्छी है लेकिन जोड़ी के हिसाब से बिल्कुल ठीक नहीं थी दिशा की कद काठी अनुज से दोहरी थी लेकिन फिर भी वो मन ही मन शादी करने को राजी हो गया था क्योंकि मम्मी को बहुत पसंद थी। वैसे दिशा 3 बहने थी और उसके 4 भाई थे जिसमें बहनों में दिशा सबसे बड़ी थी। दिशा के घरवालों ने अनुज से कहा जो कुछ बात करनी हो आप दोनों कर लो, हम लोग तब तक कमरे के बाहर ही रहेंगे, इसपर अनुज ने कहा कि हमें कुछ नहीं पूछना है, सारी बातें मम्मी ने बता ही दीं हैं बस आगे की रस्मों को पूरा करने के लिए पंडित जी से मुहूर्त निकलवा लीजिये। इतना कहकर अनुज ने दिशा से अपने भावी रिश्ते की रजामंदी दे दी, फिर क्या था इंगेजमेंट की तैयारी शुरू हो गईं दोनों तरफ। जब अनुज दिशा को देखकर घर आया और बातों ही बातों में जब पापा से जिक्र किया तो पापा भड़क उठे और अनुज की मम्मी से बोले इस घर में किसी की मनमानी नहीं चलेगी। ये रिश्ता किसी कीमत पर नहीं होगा। हमने कह दिया, उसके बाद भी जिसको जो करना है करे, वो खुद जिम्मेदार होगा। इन सब बातों के चलते अनुज के घर का माहौल अक्सर गमगीन बना रहता। उसकी इंगेजमेंट की तैयारी भी ऐसे हो रही थी जैसे घर में उसकी आखिरी विदाई की तैयारी चल रही हो। जैसे जैसे अनुज और दिशा की इंगेजमेंट का दिन धीरे धीरे नजदीक आ रहा था वैसे ही सबके दिलों में अजीब सी हलचल हो रही थी, आख़िर हो भी क्यो ना, अनुज के पापा जो राजी नहीं थे। गोदभराई और इंगेजमेंट दोनों रस्में एक ही दिन होनी थीं इसलिए कपड़े और अंगूठी पहले ही तैयार हो गए थे, बस फल और मिठाई उसी दिन लेनी थी। दिशा भी बहुत खुश थी, आखिर क्यों ना हो, एक नई ज़िन्दगी की शुरुआत की पहली कड़ी जो जुड़ने वाली थी, उसके यहां सारी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकीं थीं, इधर अनुज के घर में मान्य लोग भी पहुंच चुके थे, बस सुबह का इंतजार था। घर से निकलने से पहले घर में सबने तय किया कि पापा का जाना सबसे ज्यादा जरूरी है इसलिए उन्हें मना लिया जाए तब तक। ख़ुशी ख़ुशी रस्मों का होना जिंदगी की नई शुरुआत भी खुशियों भरी होगी। इन्ही सब बातों को सोच कर सब अनुज के पापा को मनाने में लग गए लेकिन सब ये भूल गए थे कि पापा को समझाना पत्थर पर सिर पटकना है क्योंकि उन पर काले जादू का असर इस क़दर सवार था कि उनका घर पूरी तरह बर्बाद भी हो जाये तो भी उनको उस दर्द का एहसास ना हो। शायद किस्मत को भी कुछ ऐसा ही मंजूर था उसने ऐसी परिस्थितियों को इर्द गिर्द फैला दिया कि अनुज और दिशा का रिश्ता हमेशा के लिए टूट जाये। पापा को रात भर समझाते और रोते रोते सुबह हो गयी और सारी खुशियां काफूर हो गई। किस्मत ने जिस तरह भगवान राम को राजतिलक होने वाले दिन सिंघासन की जगह वनवास दिला दिया, उसी तरह अनुज की जिंदगी में खुशियों की सौगात की जगह दर्द का समन्दर मिल गया। फिर भी माँ की ममता हार नहीं मान सकती थी, अनुज की मम्मी ने अनुज के पापा के बिना ही शादी की रस्मों को करने का फैसला ले लिया और शादी करा रहे अपने भतीजे के मौसा से कहा कि भैया दिशा के घरवालों से बात करके पूछो कि सारी तैयारियां पूरी हो गईं ना वहां पर, हम लोग कितने बजे यहां से निकले। इसपर उनके भतीजे के मौसा ने कहा दीदी आप 10 मिनट का समय दीजिए, हम अभी सब कन्फर्म करके बताते हैं, इतना कहकर उन्होंने फोन तो काट दिया लेकिन दिशा के घर बात करके तुरन्त उसकी खबर देना भूल गए कि कोई और वजह होगी। इधर अनुज की मम्मी सारी तैयारी पूरी कर चुकी थीं। 10 मिनट से कब 8 घण्टे गुजर गए पता ही नहीं चला। अनुज की मम्मी ने कई बार फोन मिलाया लेकिन कभी फोन मिलता तो उठता नहीं , कभी बन्द बताता। इन सब बातों से अनुज के घरवालों की उलझनें बढ़ती जा रही थीं, बर्दाश्त करने की जब सीमा भी पार हो गयी तो अनुज की मम्मी ने अपने दामाद से कहा कि उधर से कोई जवाब नहीं मिल रहा है, अब हम लोग क्या करें, हमको नहीं लगता कि ये लोग अच्छे से रिश्ता निभा पाएंगे इसलिए सब लोग अपने अपने घर जाओ और आराम करो। सब लोग अपने अपने घर को चल दिये। इधर शाम को जब दिशा का भाई अपने चाचा के यहाँ पहुंचा और अनुज के घरवालों आने के बारे में पूछा, तब उनका फोन आया और बोले दीदी आप सब कितने बजे तक आ रही हैं। अनुज की मम्मी वैसे भी बहुत उलझन में थीं, उन्होंने साफ साफ कह दिया कि सब लोग अपने अपने घर चले गए, अब कौन आयेगा। इतना सुनते ही उधर सब चौंक गए। बहुत मनाने की कोशिश की लेकिन सब बेकार गईं। अनुज के साथ दिशा की जिंदगी मे भी सुनामी तब आ गई , जब सारी तैयारियां पूरी हो चुकीं थीं और इंतजार था अपनी नई जिंदगी की पहली कड़ी पूरी होने का। क़िस्मत ने संयोग वश ऐसा कुछ कर दिया कि अनुज के साथ दिशा की जिंदगी में भी अंधेरा छा गया था।

30 июня 2021 г. 12:09:08 1 Отчет Добавить 1

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Durga Krishna Durga Krishna
प्यारे दोस्तों इस कहानी को पढ़कर कैसा लगा। अपनी राय जरूर दीजियेगा।
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