जो आंखों में रोज नए सपने बुनता बिना इंकार के, इधर उधर छोटे छोटे कदमों से घर को नाप लेता,
मां के हाथ खाना होता एक छोटी सी रेस लगा लेता, कभी हस्ता कभी रोता और चॉकलेट से सब भूल जाता,
फिर अगली बार मनाने को चॉकलेट के लिए रोता, एक बचपन ही तो सबका शरारती होता है,
सबकी नज़रों से हम पर प्रेम बरस्ता है,
क्या अच्छा क्या बुरा कोई नहीं पुछता है,
बचपना है ये हमारा जिसे हर बड़ा माफ़ करता है, ना कोई भविष्य की सोच ना कोई बीते कल की बात,
ये सिलसिला छोड़कर बचपन अपने जोश में होता है, चांद दीखते ही घर में छुपना, धूप खिलते यूं भागना,
ना समय का होश ना खुद का, पेड़ के नीचे होता ठिकाना,बागों के फूल तोड़ना और डालियों पे खेलना,
अब वो पेड़ कहां, अब वो बचपन कहां, दिल तो आज भी शरारती है पर बचपना कहीं गुम गया है,
घर की मर्यादा और जिम्मेदारियां की जंजीरों में बंध गया है, खो गया वो प्यारा सा बचपन जो कभी लौट कर नहीं आएगा,
पर उसकी प्यारी यादों से हमेशा दिल गुदगुदाएगा........
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