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जांच की तैयारी

भोजन करके मैं अपनी प्यारी से अपने करनेलगंज (इलाहाबाद) वाले मकान में घुल-घुल कर बातें कर रहा था कि इतने में नौकर ने आकर मुझे एक चिट्ठी दी। वह मेरे मित्र अजय सिंह (जासूस) की चिट्ठी थी, जिसमेंनिम्न लिखित बातें लिखी हुई थी –

“यदि तुमको कुछ दिन के लिए फुर्सत हो, तो तुम चिट्ठी देखते ही चले आओ, क्योंकि मुझे एक खून के मामले की तहकीकात के लिए बनारस जाना है। तुम्हारे साथ रहने से मुझे सब बातों का आराम रहता है। इसके अतिरिक्त तुम्हारे ऊपर मामले के सब भेद भी खुल जाते हैं। मैं यहाँ से डेरा सवा ग्यारह बजे कूच करूंगा।”

जब मैं चिट्ठी पढ़ चुका, तो मेरी प्यारी ने कहा – “प्यारे, क्या तुम जाने को तैयार हो?”

मैं – “प्यारी मैं इस बारे में ठीक-ठीक नहीं कह सकता, क्योंकि मुझे यहाँ भी बहुत से काम करने हैं।”

मेरी स्त्री – “यद्यपि इस समय बहुत से काम हैं, पर इन्हें तुम रघुनंदन (मेरे नौकर का नाम) पर छोड़ दो, मेरी समझ में तुम्हारे लिए आबोहवा का फेरबदल बहुत अच्छा होगा, क्योंकि आजकल तुम्हारे चेहरे की रंगत कुछ फीकी हैं, इसके अतिरिक्त अजय सिंह के मिलने से तुम्हें असीम प्रसन्नता होती है और तुम्हारा दिल भी बहल जाता है।”

मैं – “इसमें क्या संदेह? (तैयारी का हाल कहते हुए) अच्छा चलने की तैयारी करता हूँ।”

मैं झट आवश्यकीय चीजों को बां-बूंधकर फिटन पर सवार होकर इलाहाबाद के स्टेशन पर जा धमका। मेरा परम हितैषी मित्र अजय सिंह प्लेटफॉर्म पर मेरे इंतज़ार में टहल रहा था।

अजय सिंह मुझे देखते ही कहने लगा – “विजय सिंह! तुमने बहुत अच्छा काम किया। तुम्हीं एक ऐसे मेरे मित्र ही, जिसका मैं भरोसा रख सकता हूँ। अच्छा! तुम किसी खाली गाड़ी में जगह देखो, तब तक मैं टिकट ले आऊं।”

यह कहकर अजय सिंह तेजी से गया और टिकट ले आया। हम दोनों गाड़ी में सवार हो गये। थोड़ी देर के बाद अजय सिंह ने अपनी जेब से बहुत से कागज निकाले और उनको पढ़ना आरंभ किया। फिर एकाएक उन सभों को लपेटकर एक कोने में रख दिया और कहा – “विजय सिंह! क्या तुमने इस मामले का हाल सुना है।”

मैं – “कुछ भी नहीं! मैंने दो चार दिन से कोई समाचार पत्र भी नहीं पढ़े।“

अजय – “अखबारों ने इसका कोई हाल नहीं लिखा है। परन्तु जहाँ तक मैं समझता हूं या मामला पेंचीदा सा जान पड़ता है।”

मैं – “क्या इसमें से चालाकी की महक निकलती है?”

अजय – “हाँ, जिस मामले में चालाकी की महक निकलती है, उसे सॉल्व करने में भी कठिनाइयाँ उठानी पड़ती है। उस मामले में मृतक के बेटे के विरुद्ध मामला खड़ा किया गया है।”

मैं – “क्या लड़का वास्तव में अपने बाप का कातिल है?”

अजय – “हाँ, लोगों का ख़याल तो ऐसा ही है। पर मैं तुमसे उन बातों को बयान करता हूँ, जिसका कि मैंने अब तक छान-बीन कर पता लगाया है।”

“बनारस के जिला में कपिलधारा एक गाँव का नाम है। इस गाँव का सबसे बड़ा जमींदार हरिहर सिंह है, जिसने अपने कौशल से कलकत्ते जाकर बहुत सा धन कमाया था। थोड़े दिन हुए, वह अपनी जन्मभूमि को लौट आया। उसने अपनी जमींदारी का थोड़ा हिस्सा विश्वनाथ सिंह को दे रखा था। इससे अब विश्वनाथ सिंह भी उसका हिस्सेदार हो गया था। विश्वनाथ सिंह को केवल एक लड़का है, जिसकी आयु अठारह वर्ष को होगी। हरिहर सिंह का कोई लड़का नहीं है, किन्तु उसी के (विश्वनाथ सिंह के) लड़के के उम्र की एक लड़की है। परन्तु इन दोनों (हरिहर और विश्वनाथ) में से किसी की स्त्री जीवित नहीं है और दोनों रंडा कहलाते हैं। हरिहर ने अपनी स्त्री के मरने के बाद अपना चाल-ढाल बिल्कुल बदल दिया। परन्तु विश्वनाथ और उसका लड़का घुड़दौड़, ढेढ़रों, तमाशों और मेलों में खूब पैसा उड़ाया करते थे। विश्वनाथ सिंह के यहाँ केवल दो नौकर हैं, जिसमें एक मर्द और एक औरत है, किन्तु इसके विरुद्ध हरिहर सिंह के यहाँ छः पुरुष और स्त्री नौकर हैं। जैसा कि आगे चलकर बयान करूंगा। तीन जून को तीन बजे विश्वनाथ सिंह वरुणा नदी की तरफ गया और उधर से फिर जीवित न लौटा।

विश्वनाथ सिंह के रहने के स्थान से वरुणा नदी पाँच मील की दूरी पर है। उसी समय जबकि वह उधर को आ रहा था, दो आदमियों ने उसे देखा था। जिनमें से एक तो औरत है, जिसका नाम मालूम नहीं और दूसरा एक आदमी है, जिसके नाम गिरधारी है, जो हरिहर सिंह के यहाँ ग्वाले का काम करता है। वह कहता है कि विश्वनाथ सिंह अकेला जा रहा था, किन्तु एक दूसरे आदमी का बयान है कि विश्वनाथ सिंह के चले जाने के बाद उसका लड़का (महादेव सिंह) भी अपने कंधे पर बंदूक रखे हुए यदि तरफ का रहा था। अतएव उसने उसकको देखा, तो और तेजी के साथ कदम उठाना आरंभ कर दिया। इसके बाद के वृतांत के अनुसार उसे मालूम नहीं।

जब वे दोनों उसकी दृष्टि से गायब हो गये, तो उन्हे एक लड़की ने देखा, जो उस नदी के दूसरे किनारे पर फूल तोड़ रही थी। उस लड़की का बयान है कि वे दोनों अर्थात बाप बेटे परस्पर कड़ाई से बातचीत कर रहे थे। विश्वनाथ सिंह अपने लड़के को घृणित शब्दों से तिरस्कृत कर रहा था। महादेव ने अपने बाप को मारने के लिए जब हाथ उठाया, तो वह लड़की भयातुर होकर वहाँ से भागी और अपनी माँ के पास जाकर सब हाल कहने लगी।

इतने में महादेव दौड़ा हुआ आया और बोला – “मैंने अपने बाप को नदी किनारे मरा पाया है। मैं तुम्हारी सहायता चाहता हूँ।” इस समय वह बदहवास सा हो रहा था। न उसके सिर पर पगड़ी थी, न हाथ में बंदूक। किन्तु उसका दायां हाथ खून से तर था।

जब उसने जाकर देखा तो विश्वनाथ नदी के किनारे घस पर मरा पड़ा था। उसके सिर के चोंटों और गहरे घावों से मालूम होता था कि महादेव ने उसे अपने भारी बंदूक के कुंदे से मारा है, जो उससे थोड़ी दूर घास पर पड़ी हुई थी। इन बातों महादेव अपने बाप के खून के दोष में गिरफ्तार कर लिया गया है।“

मैं – ” मेरे मित्र! इन सब बातों से तो यही मालूम होता है कि निःसंदेह लड़का अपने बाप का खूनी है।”

अजय – “हाँ भाई! इन बातों से ऐसा ही प्रतीत होता है, पर जब तुम दूरदर्शिता से काम लोगे, तो तुम्हें इसका वास्तविक कारण मालूम हो जायेगा। यह सब मामले ऐसे धोखे से मिले रहते है कि जो कुछ ऊपरी तौर से मालूम होता है, प्रायः उसका परिणाम उसके विरुद्ध ही निकालता है। यद्यपि इस समय महादेव को विश्वनाथ का खूनी समझकर इस पर मुकदमा बड़े जोर-शोर से चलाया गया है, परन्तु कई साक्षियों से जो इसके विरुद्ध हैं – जिनमें एक हरिहर सिंह की लड़की भी गवाही है, जिसने अपनी तरफ से एक वकील भी किया है, मामले का रंग कुछ दूसरा ही हो जाता है।

मैं – “मेरे देखने तो यह मामला सत्य कि मालूम होता है, देखें तुम इससे क्या परिणाम निकालते हो।”

अजय – “वाह! तुमने खूब परिणाम निकाला। पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि उस मामले को एक मिनट में असत्य ठहरा सकता हूँ और उसको (मुकदमे को) ऐसी दशा में पहुँचा सकता हूँ, जिसे वे ज़रा भी नहीं समझ सकते। परिणाम निकालने कि कौन कहे।”

मैं – “तो फिर?”

अजय – “तो फिर क्या? मित्र मुझे अच्छी तरह मालूम है कि तुम नित्य प्रात:काल हजामत बनाते हो। परंतु जब मैं देख लूंगा कि तुम्हारे एक तरफ के गालों पर के बाल अच्छी तरह साफ नहीं हुए हैं, तो मुझे मालूम हो जायेगा कि इसमें हज्जाम की भूल है या हज्जाम के छुरे की। ऐसा कहने से मेरा यह मतलब है कि ऐसे मामले में बहुत से बनावट के होते हैं। क्या आदमी उनसे अपना काम अर्थात बनावट से नहीं निकाल सकता! एतएव दो बातें ऐसी और भी है, जो पुलिस कोर्ट से दरियापुर की गई है और ध्यान देने के योग्य है।”

मैं – “वह क्या है?”

अजय – “यह तो विदित हो ही चुका है कि महादेव खून करते नहीं पकड़ा गया है, किंतु से गिरफ्तारी थोड़ी देर बाद हुई। और जब पुलिस इंस्पेक्टर ने उससे कहा था कि अब तुम्हें बाहर की हवा खाने को नहीं मिलेगी, तो उसने लापरवाही से जवाब दिया कि मैं यह सुनकर जरा भी भयभीत नहीं होता और ना मुझे इसके लिए किसी किस्म की तहदूद की जरूरत है। इस जवाब का प्रत्युत्तर यह हुआ कि वह तमाम शकें, जो हाकिम के दिल पर बाकी रह गई थी, एकाएक दूर हो गई।

मैं – “इन बातों से साफ-साफ यही मालूम होता है कि महादेव ने अपने मुँह ही से अपने अपराध को स्वीकार कर लिया।”

अजय – “कदापि नहीं!”

मैं – “क्यों?”

अजय – “इससे कि यदि वह अपराधी होता, तो अपनी गिरफ्तारी पर आश्चर्य और बहाना करता ना कि ऐसे खुर्राटी से जवाब देता। सच तो यह है कि उससे खुर्राटेदार जवाब देने वाला व्यक्ति या तो बिल्कुल बेकसूर या चंचल मिजाज़ या अव्वल दर्जे का पालसीदार होता है। गौर करने से यह मालूम हो सकता है कि उसका अपने मृतक बाप के पास खड़ा रहना क्या उसके हार्दिक पितृभक्ति को नहीं प्रकाश करता है? भला फिर कब उससे ऐसा कठिन कृत्य हो सकता है? और उस लड़की की गवाही से मालूम होता है कि वह अपने बाप को मारने के लिए हाथ उठाया था। यह कदापि सत्य नहीं हो सकता। मैं उससे इजहार और बातचीत से यही परिणाम निकलता हूँ कि वह कदापि अपराधी नहीं है।”

मैं इन बातों को सुनकर मैंने अपने कंधों को हिलाकर कहा, “मैं बहुत सी नज़ीर पेश कर सकता हूँ कि बहुत से लोग थोड़े लोगों की ही गवाही पर फांसी चढ़ा दिए गए हैं।”

अजय – “निःसंदेह! परंतु उनमें से बहुत से ऐसे भी हैं, जो निरपराध फांसी पर लटकाए गए हैं।”

मैं – “पहले यह तो देखिए कि महादेव का क्या बयान है।”

अजय – “मुझे संदेह है कि उसके बयान उसके हक में अच्छे नहीं है, परंतु दो एक बातें और नुक्ते ऐसे हैं कि जो विश्वास की योग्य नहीं है.”

यह कहकर अजय सिंह ने एक कागज़ निकाल कर दिया, जिस पर मैंने निम्न लिखित इज़हार पाया।

Aug. 7, 2022, 9:57 a.m. 0 Report Embed Follow story
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