सुरीमुख गांव में प्रकाश नामक एक लड़का रहता था। वह बहुत हीं समझदार और स्वाभलंभी आदमी था। वह कभी भी दूसरों के बातों पर ध्यान न देता, और अपने काम से काम रखता। वह सिर्फ और सिर्फ अपने गुरुजी कि बात माना करता। उसके गुरुजी बहुत ज़्यादा गुणवान और शांत थे, मानो की दुनिया का सारा ज्ञान उनके पास हो! एक दिन उसने सोचा कि क्यूं न वह एक राजा के राज्य में जा कर मुख्यमंत्री बन जाए। तो उसे काम भी मिल जाएगा और इज्ज़त भी। उसने गोरखपुर के राजा कृष्णदेव राय के बारे में बहुत ज़्यादी अच्छी बाते सुनी थी। उसने सोचा की— " किसी छोटे मोटे राजा के पास जाऊंगा तो उतना ज़्यादा इज़्ज़त नहीं बटोर पाऊंगा। इसलिए किसी बड़े राजा के पास जाने में ही भलाई है। "
उसने अपने गुरुजी से आशीर्वाद लिया और बोला कि— " गुरुजी में एक नई शुरुवात करने जा रहा हूं। आप मुझे कुछ ऐसी बात बताईए कि मैं उसे हमेशा के लिए याद रखूं और उस बात से मुझे बहुत कुछ प्राप्त हो। गुरुजी ने कहा कि— " हे पुत्र! वैसे तो मैंने तुम्हे काफ़ी शिक्षा दे दी है, फर्भी मैं तुम्हे दो बाते बताता हूं जो तुम्हे किसी भी हिचकिचाहट के बिना अमल करनी होगी। परंतु अगर तुमने इनका पालन नहीं किया तो तुम्हे बहुत ही ज़्यादा पछतावा होगा! "
प्रकाश बोला— " गुरुजी में आपकी बात का हमेशा से अमल करता आया हूं। और आज भी करूंगा। आप कृपया उं दो बातों का वर्णन कीजिए। "
गुरुजी ने शांति से उसे देखा और मुस्कुराकर बोले— " हे वंस! हमेशा याद रखना कि पहला - कभी भी किसी की भी निंदा मत करना। दूसरा - हमेशा सब की सेवा करना। "
" जो आज्ञा गुरुदेव! " कहकर प्रकाश चल दिया।
उसने जब चहल - पहल वाले राज्य में कदम रखा तो वह कुछ समझ न पाया कि उसे कहां जाना है? तभी उसकी नज़र एक तांगेवाले पर पड़ी। उसने उस तांगेवाले से पूछा की— " राजा कृष्णदेव राय का महल कहां है? " उस तांगेवाले ने उसे सर से पांव तक देखा और बोला— " क्या हुआ? तुम इस शहर में नए आए हो क्या? यहां तुम्हे उड़ते हुए पंछी भी बता देंगे कि राजा कृष्णदेव राय का महल कहां है। " उस तांगेवाले ने उसे पता बताया और चालगाया। जैसे वह महल पहुंचा, सब उसकी ओर फूल फेंकने लगे। उसे यह लगा की सब उसको फूल फेंक रहे हैं, पर जब उसने पिछे मुड़ कर देखा तो राजाओं के राजा, सम्राटों के सम्राट, कृष्णदेव राय अपने शुभ चरण लेकर रज्यग्रह में प्रवेश कर रहे थे। प्रकाश एक कोने में जाकर खड़ा हो गया। राजा ने अपना स्थान ग्रहण किया। एक सिपाही ने राजा को बोला— " हे महाराज! में आपसे कुछ कहना चाहता हूं। " राजा ने कहा — " आवश्य! वर्णन कीजिए " उस सिपाही ने कहा— "महाराज, आप तो जानते ही है कि हमारे मुख्यमंत्री अवकाश हो गए हैं, इसलिए एक आदमी हमारे मुख्यमंत्री की जगह लेने आया है।" राजा ने कहा — "उस आदमी को बुलाया जाए!" प्रकाश सहमा - सहमा हुआ सा बाहर आया। राजा ने प्रकाश से पूछा— "यहां तुम किस लिए आए हो?" प्रकाश ने हिम्मत करके उन्हें बोला—"महाराज, मैं यहां एक मुख्यमत्री बनने आया हूं।" राजा ने कुछ देर तक कुछ सोचा और उससे यह प्रशन पूछा कि— "तुम एक राज्य के राजा भी बन सकते थे, पर तुम मुख्यमंत्री बनना चाहते हो। ऐसा क्यूं?" प्रकाश ने सोच समझकर बोला कि— "महाराज मैं केवल आपकी ही शरण में रहना चाहता हूं। अगर मैं किसी दूसरे राज्य में राजा बन जाता, और भगवान की कृपा से बहुत बड़ा राजा बन जाता तो मेरे और आपके बीच में युद्ध होता, जो मुझे बिल्कुल अच्छा न लगता। राजा ने मन ही मन सोचा कि "यह लड़का तो सही जगह पर सही बात बोलने में माहिर है। एक काम करता हूं इससे एक कठिन परीक्षा के लिए भेजता हूं, तब पता चलेगा कि ये एक राजा की तरह बुद्धिमान और शूरवीर है की नहीं?"
एक दिन महाराज बिस्तर पर बैठे ध्यान कर रहे थे। तभी अचानक एक सिपाही ने आकर उनसे कहा कि— "महाराज, राज्य में पानी की कमी हो रही है। महल के आगे कुछ लोग हाहाकार मचा रहे हैं। जल्दी से जल्दी कुछ करना होगा।" महाराज ने सोचा कि — 'यही सही समय है, जब हम प्रकाश की परीक्षा ले सकते हैं।' महाराज ने प्रकाश को बुलवाया और उससे कहा — "प्रकाश, आज पूरे राज्य में पानी के लिए लड़ाई हो रही है। इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम राज्य के आगे जो पर्वत है, उस पर्वत पर एक बहुत विशाल कुंआ है, उससे कम से कम एक बाल्टी पानी भरकर ले आओ।" उसने सोचा की —' गुरुजी ने मुझसे कहा था कि हमेशा दूसरों की सेवा करते रहना, इसलिए मुझे यह काम तो करना ही पड़ेगा। पर एक बात समझ में न आ रही है कि, महाराज इतने बड़े राज्य के लिए मुझसे सिर्फ और सिर्फ एक बाल्टी पानी लाने को क्यूं कह रहे हैं?'
उसे एक बात तो पता ही नहीं थी कि उस कुएं में जाने से बड़े बड़े लोग भी डरते हैं। क्यूंकि उस कुएं में एक प्रेत आत्मा रहता था। जो कई साल से अपनी मरी हुई बीवी के साथ उस कुएं में रहता था। २०० वर्ष पहले उसकी बीवी ने उस कुएं में छलांग लगा कर अपनी जान दे दी थी। वह अपनी बीवी से बहुत प्यार करता था, तो उसने भी छलांग लगा कर अपनी जान दे दी। तबसे दोनों ने उस कुएं पर कब्ज़ा कर लिया। वह दोनों देखने में बहुत बुरे और खून से लतपथ थे, और उसकी बीवी सिर्फ और सिर्फ कंकाल बनी हुई थी। जो कोई भी उस कुएं में जाता तो वह प्रेत अपनी बीवी के साथ प्रकट हो जाता, और उस इंसान से वह प्रेत पूछता कि— "बताओ मैं कैसा लग रहा हूं?" और जैसे वह इंसान बोलता की "तुम और तुम्हारी बीवी बहुत ही ज़्यादा खराब लग रहे है" तो वह प्रेत उसे अपनी ओर खींच लेता और मार कर उसकी हड्डी बाहर सजा के रख देता।
प्रकाश एक घोड़े पर बैठ कर उस पर्वत की ओर चल दिया। प्रकाश पर्वत पर पहुंचने के बाद उस कुएं के तरफ आगे बढ़ा। जैसे ही उसने बाल्टी को हाथ लगाया वैसे ही एक प्रेत अपनी बीवी के साथ प्रकट हो गया। उसने प्रकाश से बोला "तुम यहां क्यूं आए हो, चले जाओ यहां से!" प्रकाश ने उससे बोला "मैं यहां एक बाल्टी पानी भरने आया हूं। कृपया मुझे पानी भरने दीजिए।" उस प्रेत ने सोचा कि— 'पहली बार किसी ने मुझे देखकर बिना डरे अच्छे से बात की है।' उस प्रेत ने प्रकाश को पूछा कि— "बताओ मैं और मेरी बीवी कैसी लग रही है?" प्रकाश उसे यह बोलने ही वाला था कि वह दोनों बहुत गंदे लग रहे हैं, पर फिर उसे अपनी गुरुजी कि बात याद आ गई। उसके गुरुजी ने उससे यह कहा था कि— "कभी भी किसी की भी निंदा मत करना।" तभी प्रकाश ने उससे कहा "आप दोन तो बहुत ही अच्छे लग रहे हो। और आपकी बीवी तो दुनिया की सबसे सुंदर औरत लग रही है।" यह सुनते ही प्रेत चौक गया और उसने प्रकाश से बोला "शुक्रिया! तुम तो पहले इंसान हो जिसने हमे देखकर सुंंदर कहा हो। तुम्हे जो चाहिए तुम मांग लो।" प्रकाश बोला— "आप कृप्या मुझे यहां से एक बाल्टी पानी भरने दीजिए, यह कुआ हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दीजिए।" प्रेत ने सोचा और कहा— "ठीक है, तुमने मेरी तारीफ़ की इसलिए मैं यहां से चला जाता हूं।" प्रकाश ने एक बाल्टी पानी ली और महल गया। उसे सब देेख कर हैरान हो गए, की वह जिंदा लौट कर आ गया। महाराज ने उसे भेट की तौर पर सोने के १,००० सिक्के दी और उसे मुख्यमंत्ररी बना दिया।
ऐसे ही प्रकाश ने उस प्रेत को उस कुएं से हमेशा हमेशा के लिए भगा दिया और अच्छे से अमल किया अपने गुरुजी के "दो बांते"।
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