धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पांडवाश्चैव किमकुर्वत संजय।।
राजा धृतराष्ट्र ने कहा, संजय कहो! धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में एकत्र हुये तथा युद्ध की इच्छा रखने वाले कौरवों और पांडवों ने क्या किया?
दृष्टा तु पांडवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्।।
संजय ने कहा, दुर्योधन ने जब पांडवों की सुसज्जित और सुव्यूह युक्त सेना को देखा तो वह द्रोणाचार्य के पास गया और बोला।
पश्येतां पांडुपुत्रानामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेन तव शिष्येन धीमता।।
हे गुरुवर इस सेना को देखिए जो कि व्यूाकार खड़ी है। यह सेना द्रुपद पुत्र धृष्टद्युम्न के नेतृत्व में खड़ी है। पांडवों की इस महा भयंकर सेना को देखिए।
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।।
पांडवों की इस सेना में भीम और अर्जुन के समान शूरवीर विराट और द्रुपद जैसे महारथी हैं।
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैव्यश्च नरपुंगवः।।
इस सेना में धृष्टकेतु, चेकितान, काशीराज, पुरुजित, कुंती भोज और श्रेष्ठ शैव्य जैसे योद्धा हैं।
युधामन्युश्च विक्रांत उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः।।
बलवान युधामन्यु, उत्तमौजा, अभिमन्यु और द्रौपदी के पांच पुत्र यह सभी महारथी युद्ध के मैदान में उपस्थित हैं।
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संग्यार्थं तान्ब्रवीमि ते।।7।।
हे गुरु श्रेष्ठ हमारे पक्ष में भी जो प्रधान -प्रधान योद्धा हैं। उनके बारे में मैं आपको बताता हूं। मेरी सेना में बड़े-बड़े सेनानायक जो हैं, उनके बारे में आपको बता रहा हूं।
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिन्जयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।।
गुरुवर आप द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा और भूरिस्र्वा जैसे वीर हमारी सेना में हैं।
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्ध विशारदाः।।
मेरे पक्ष में और भी कई विभिन्न प्रकार के हथियारों से लैस और युद्ध में चतुर योद्धा हैं। वह सब मेरे लिए शत्रुओं से मरने- मारने के लिए तैयार हैं।
अपर्याप्तं तद्स्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्।।
हमारी यह सेना भीष्म पितामह के नेतृत्व में रक्षित और अजेय है। जबकि पांडवों की सेना भीम द्वारा रक्षित है, और जीतने में सरल है।
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि।।
अतः आप सभी योद्धा लोग, अपने नियत स्थान पर खड़े होकर सब ओर से पितामह भीष्म की रक्षा करें।
तस्य संञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।
सिंहनादं विनद्योच्चै शंखं दध्मौ प्रतापवान्।।
कौरवों के सबसे बड़े, सबसे प्रतापी पितामह भीष्म ने दुर्योधन के लिए खुशी उत्पन्न करने के लिए ऊंची आवाज में शेर के समान दहाड कर और गरज कर अपना शंख बजाया।
पितामह भीष्म कौरवों के सबसे बडे बुजुर्ग थे। वह नहीं चाहते थे कि पांडवों का हक मारा जाए इसलिए दुर्योधन को समझाते रहते थे। लेकिन दुर्योधन को समझाने में नाकामयाब रहे। पितामह एक अच्छे व्यक्ति थे।
लेकिन उस समय की परंपरा के अनुसार और अपनी प्रतिज्ञा में बंध कर दुर्योधन के पक्ष में हो गए। अच्छे व्यक्ति होते हुए भी वे पापी कौरवों के साथ थे। इसलिए उनका अंत बहुत बुरा हुआ।
पितामह भीष्म एक प्रतापी सेनापति थे और दुर्योधन के मुख्य सेनापति थे। इसलिए उनका फर्ज था कि वह दुर्योधन को खुश करें और अपने पक्ष को विजय दिलायें तथा अपने पक्ष का मनोबल ऊंचा करें। इसलिए वह आधे मन से ही सही लेकिन दुर्योधन का साथ दे रहे थे।
परंतु मेरी सोच है कि अगर मैं पितामह भीष्म की जगह होता तो मैं दुर्योधन को बंदी बनाकर युधिष्ठिर को ही राज्य सौंप देता। आपकी राय क्या है? क्या मैं गलत तो नहीं बोल रहा हूं?
Vielen Dank für das Lesen!
Wir können Inkspired kostenlos behalten, indem wir unseren Besuchern Werbung anzeigen. Bitte unterstützen Sie uns, indem Sie den AdBlocker auf die Whitelist setzen oder deaktivieren.
Laden Sie danach die Website neu, um Inkspired weiterhin normal zu verwenden.